पिछले चैप्टर (chapter) में, हमने इकोनॉमिक साइकिल (economic cycle) के एक्सपैंशन फेज (expansion phase) के बारे में संक्षेप में चर्चा की थी।
अब, हम आर्थिक चक्र के एक और चरण की ओर बढ़ रहे हैं जो कि पीक फेज (peak phase) है।
कॉन्ट्रैक्शन फेज (contraction phase), जिसे डाउनटर्न (downturn) या रिसेशन (recession) भी कहा जाता है, को विभिन्न आर्थिक सेक्टर्स में आर्थिक गतिविधि में गिरावट के रूप में पहचाना जाता है। प्रमुख संकेतक जैसे ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP), रोजगार दरें, औद्योगिक उत्पादन, और उपभोक्ता खर्च आमतौर पर इस अवधि के दौरान नकारात्मक वृद्धि या ठहराव दिखाते हैं। बिजनेस कॉन्फिडेंस (business confidence) में गिरावट आती है, जिससे इन्वेस्टमेंट्स (investments) कम हो जाती हैं और विस्तार की गतिविधियों में सतर्क दृष्टिकोण अपनाया जाता है।
ओवरकैपेसिटी (overcapacity): आर्थिक चक्र के पीक फेज के दौरान, व्यवसाय अधिक मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ा देते हैं। हालांकि, जब अर्थव्यवस्था धीमी हो जाती है, तो मांग पूर्व स्तरों पर नहीं रह सकती है, जिसके परिणामस्वरूप मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, और रिटेल जैसे उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता रहती है।
इन्वेंटरी एडजस्टमेंट्स (inventory adjustments): व्यवसाय भविष्य की मांग का अधिक अनुमान लगाकर बिना बिके इन्वेंटरी का सामना कर सकते हैं। समायोजन के लिए, वे उत्पादन स्तरों को कम कर सकते हैं और अतिरिक्त स्टॉक को साफ करने के लिए छूट दे सकते हैं, जिससे राजस्व और प्रॉफिटेबिलिटी (profitability) और भी प्रभावित हो सकती है।
इंटरेस्ट रेट इंक्रीसेस (interest rate increases): केंद्रीय बैंक इन्फ्लेशन (inflation) को नियंत्रित करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। लंबे समय तक ग्रोथ फेज के बाद जैसे आर्थिक ओवरहीटिंग की अवधि में, वे इंटरेस्ट रेट्स (interest rates) बढ़ा सकते हैं। इंटरेस्ट रेट्स बढ़ने से बिजनेस और कंज्यूमर्स के लिए उधार लागत बढ़ जाती है, जिससे नए प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्टमेंट्स और घरों और ऑटोमोबाइल्स जैसी ड्यूरेबल गुड्स (durable goods) की खरीदारी कम होती है।
कंज्यूमर स्पेंडिंग (consumer spending): उच्च इंटरेस्ट रेट्स कंज्यूमर स्पेंडिंग हैबिट्स (consumer spending habits) को प्रभावित करते हैं। मॉर्गेजेज और बड़े खरीदारी के लिए महंगे लोन से विश्वास घट सकता है, जिससे रिटेल और सर्विस इंडस्ट्रीज प्रभावित होती हैं।
जियोपॉलिटिकल फैक्टर्स (geopolitical factors): राजनीतिक अस्थिरता, व्यापार विवाद, या सैन्य संघर्ष वैश्विक सप्लाई चेन और इन्वेस्टर कॉन्फिडेंस (investor confidence) को बाधित कर सकते हैं, जिससे व्यापार वॉल्यूम्स और आर्थिक गतिविधि में गिरावट हो सकती है।
ग्लोबल डिमांड का शिफ्ट (shift of global demand): वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में परिवर्तन या उपभोक्ता प्राथमिकताओं में बदलाव निर्यात-उन्मुख उद्योगों, जैसे कमोडिटीज और मैन्युफैक्चरिंग को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे उन राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव पड़ता है जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अत्यधिक निर्भर हैं।
फाइनेंशियल मार्केट वोलेटिलिटी (financial market volatility): स्टॉक मार्केट क्रैश या बॉन्ड मार्केट डिसरप्शन इन्वेस्टर्स और इंस्टीट्यूशन्स के बीच कॉन्फिडेंस क्राइसिस (confidence crisis) को ट्रिगर कर सकते हैं, जिससे क्रेडिट कंडीशंस (credit conditions) का टाइटनिंग और कैपिटल मार्केट्स (capital markets) में कॉन्ट्रैक्शन हो सकता है।
रोजगार पर प्रभाव: बढ़ती बेरोजगारी दरें कॉन्ट्रैक्शन फेज की पहचान होती हैं क्योंकि व्यवसाय लागत कम करने और कम मांग के अनुसार अपने वर्कफोर्स को कम करते हैं। आर्थिक चक्रों के प्रति संवेदनशील उद्योग, जैसे मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, और हॉस्पिटैलिटी, आमतौर पर महत्वपूर्ण जॉब लॉसेस का अनुभव करते हैं।
कंज्यूमर बिहेवियर (consumer behavior): आर्थिक डाउनटर्न्स के दौरान कंज्यूमर कॉन्फिडेंस (consumer confidence) कम हो जाती है, जिससे घर गैर-आवश्यक खर्चों को कम करते हैं और आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को प्राथमिकता देते हैं। घटित उपभोक्ता मांग का प्रभाव रिटेल सेल्स, एंटरटेनमेंट, और ट्रैवल सेक्टर्स पर पड़ता है।
इन्वेस्टमेंट और बिजनेस एक्टिविटी (investment and business activity): व्यवसाय विस्तार योजनाओं में देरी करते हैं, नई टेक्नोलॉजीज में इन्वेस्टमेंट्स को टालते हैं, और ग्रोथ इनिशिएटिव्स पर कैश फ्लो मैनेजमेंट को प्राथमिकता देते हैं। इससे कॉर्पोरेट प्रॉफिट्स (corporate profits) में कमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप कैपिटल एक्सपेंडिचर्स (capital expenditures) कम हो जाते हैं और हायरिंग और वेज इंक्रीसेस (wage increases) के प्रति सतर्क दृष्टिकोण होता है।
गवर्नमेंट इंटरवेंशन (government intervention): पॉलिसीमेकर्स (policymakers) आर्थिक कॉन्ट्रैक्शन के प्रभाव को कम करने और आर्थिक रिकवरी में मदद करने के लिए फिस्कल और मॉनेटरी पॉलिसीज (fiscal and monetary policies) का उपयोग करते हैं। फिस्कल मेजर्स (fiscal measures) में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, बेरोजगारी लाभ, और टैक्स कट्स के लिए सरकार द्वारा बढ़े हुए खर्च शामिल हो सकते हैं ताकि ओवरऑल डिमांड को बढ़ावा दिया जा सके। सेंट्रल बैंक्स (central banks) इंटरेस्ट रेट्स को कम कर सकते हैं, वित्तीय संस्थानों को लिक्विडिटी प्रोवाइड कर सकते हैं, और क्वांटिटेटिव ईजिंग प्रोग्राम्स (quantitative easing programs) को प्रमोट कर सकते हैं ताकि उधार और इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा दिया जा सके।
2008 ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस (2008 Global Financial Crisis):
2008 का ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस अमेरिका में हाउसिंग मार्केट के पतन से उभरा, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को झटका दिया। इस संकट ने पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधि में गंभीर संकुचन का कारण बना, क्योंकि बैंकों ने लिक्विडिटी शॉर्टेज का सामना किया, जिससे एक क्रेडिट क्रंच हुआ जिसने वित्तीय बाजारों को पंगु बना दिया और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बाधित कर दिया। दुनिया भर की सरकारों ने वित्तीय संस्थानों को स्थिर करने और बैंकिंग सेक्टर में विश्वास बहाल करने के लिए स्टिम्युलस पैकेजेस और बेलआउट प्रोग्राम्स (bailout programs) को लागू किया।
COVID-19 महामारी (COVID-19 Pandemic): 2020 में, COVID-19 महामारी के कारण व्यापक लॉकडाउन, यात्रा प्रतिबंध, और सप्लाई चेन में व्यवधानों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था ने एक महत्वपूर्ण डाउनटर्न का अनुभव किया। व्यवसायों और व्यक्तियों की मदद के लिए, सरकारों ने असाधारण फिस्कल स्टिम्युलस मेजर्स (fiscal stimulus measures) को लागू किया, जबकि सेंट्रल बैंक्स ने इंटरेस्ट रेट्स को रिकॉर्ड निचले स्तर पर घटा दिया। इस वैश्विक संकट ने अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन की आपसी निर्भरता को उजागर किया और लंबे समय की योजना में हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर और आर्थिक रेजिलियंस (economic resilience) की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।
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Disclaimer: This article is for informational purposes only and does not constitute financial advice. It is not produced by the desk of the Kotak Securities Research Team, nor is it a report published by the Kotak Securities Research Team. The information presented is compiled from several secondary sources available on the internet and may change over time. Investors should conduct their own research and consult with financial professionals before making any investment decisions. Read the full disclaimer here.
Investments in securities market are subject to market risks, read all the related documents carefully before investing. Brokerage will not exceed SEBI prescribed limit. The securities are quoted as an example and not as a recommendation. SEBI Registration No-INZ000200137 Member Id NSE-08081; BSE-673; MSE-1024, MCX-56285, NCDEX-1262.
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